Friday 8 May 2015

माँ मेरे जीवन का संबल है .....

भूख का एहसास होने से पहले खाना खिलाती माँ ....नींद के एहसास से पहले अपना आँचल बिछाती माँ .... चोट मुझे लगती और दर्द से कराह उठती माँ ... उँगलियाँ थामकर टेड़े – मेढ़े क ,, ग के व्यंजन ठीक कराती माँ ....अपनी आँखों से दुनिया को देखने का हुनर सिखाती माँ ......काली कोयल और हरे तोते से रंगों की पहचान कराती माँ .... खाने को न कहने पर रोटी की जगह आंटे की चिड़िया पकाती माँ .... अपनी बच्ची के सामने तनिक भी खतरे को भाँपकर हिमालय पर्वत की तरह आगे खड़ी हो जाती माँ .... अन्याय और असत्य के सामने कभी न झुकने का पाठ पढ़ाती माँ ..... मेरी बेटी तो रानी है कहकर गर्व से सर उठाती माँ ...और फिर आशीष भरे हाथो से मन को सहलाती माँ ..... माँ .... जब आँखें मूंदती हूँ तो एक – एक करके माँ के सभी रूप साकार होकर सामने आते हैं ...मन करुणा और शक्ति के मीलित भाव से भर उठता है .... माँ मेरे जीवन का संबल है ... अपने शरीर के अंश से मेरे अस्तित्व का निर्माण किया है माँ ने .... ज्ञान ...शक्ति...साहस ...त्याग ...बलिदान ...दया ...ममता ...जैसे उर्वरकों से पोषा है मुझे .... । मेरे लिए माँ की महत्ता और भी अधिक रही क्योंकि मेरी माँ ने माँ और पिता दोनों का किरदार निभाया ....बखूबी दोनों जिम्मेदारियाँ निभाई । माँ बनकर मुझमे प्रेम और करुणा को पोषा ...तो पिता बनकर मुझे सारी दुनिया के सामने आत्म विश्वास के साथ खड़ा रहना सिखाया ...भीषण झंझावातों में भी अडिग होकर हर मुसीबत से लड़ना सिखाया ... आज मैं जो भी हूँ ...जैसी भी हूँ ...अपनी माँ की तरासी हुई एक प्रतिमूर्ति मात्र हूँ .... आज मात्र दिवस के अवसर पर मैं अपने जीवन की समस्त उपलब्धियों को अपनी माँ के चरणों में अर्पित करती हूँ ....माँ ...माँ ...तुम्ही मेरी जन्म दाता हो ... तुम्ही मेरी ...विधाता हो .... माँ तुम्ही मेरा ईश्वर हो ...जो शीश झुकाने से पहले ही सारी दुवाएं सुन लेती हो .... हाँ ...माँ ...तुम्ही मेरा ईश्वर हो ..... ।


अंजलि पंडित । 

Friday 6 March 2015

बचाओ इस देश को विभीषण से ........

आपने वो कहावत तो सुनी होगी घर का भेदी लंका ढावे ̉ रावण ने चाहे जितने ही 
पाप किए हो जितने अत्याचार किए हो ....पर उसका विनाश कभी न होता यदि उसका अपना भाई विभीषण उसका भेद प्रभु श्री राम से न बताता , यानी लंका के विनाश का कारण कौन था – विभीषण ...अब बताइए एक विभीषण ने लंकाधिपति रावण जिसके दस शीश, बीस भुजाए थी ...उसका विनाश करवा दिया तो फिर  सोचिए इस समाज का क्या हाल होगा जहा हर घर मे एक विभीषण है या फिर ऐसा कहा जाए कि हर भाई दूसरे भाई के लिए विभीषण है तो गलत नहीं होगा क्योंकि आज समाज मे यही तो हो रहा है यदि एक भाई थोड़ा आगे निकल गया तो दूसरा भाई उसे मात देने के लिए ऐसे लोगों को दोस्ती करने के लिए ढूंढता है जिससे कि वह उसके दुश्मन के साथ मिलकर आपने ...भाई को हरा सके इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है कि जो देश कभी विश्व बंधुत्व का पाठ पढ़ाता था दूसरे देशों को, जिसका भाई चारा मिसाल था सबके लिए ...आज वह देश विभीषणों के कारण आतंकवाद का शिकार हो गया है क्योंकि घरो के अलावा कुछ ऐसे विभीषण भी है जो देश के लिए कलंक है,  जो रहते तो हिंदुस्तान में है लेकिन चंद रुपयो के खातिर अपने ही देश की जासूसी करते है पड़ोसी मुल्कों के भेदिए बन बैठे है वो जो अपने ही भाइयों का खून बहा रहे हैं  .....इसलिए आज आवश्यकता रावण से अधिक विभीषणों से देश को बचाने की है ...बचाइए इस देश को विभीषणों से और ऐसा तभी संभव हो सकता है जब आप विभीषण न बने .....

                                           

अंजलि पंडित । 

Tuesday 3 March 2015

सिर्फ बाहर ही नहीं अपने अंदर भी रंग भरें

गलियों में उड़ता गुलाल ... रंग बिरंगी पिचकारियाँ .... तरह-तरह के पकवानों और गुझिया मिठाई की खुशबू .... मस्ती के रंगों में सराबोर लोग .... हर तरफ उठती पानी की फुहारें ....और सभी के मन में अद्भुत उमंग , यह होली का त्योहार है ही ऐसा जिसमे हर व्यक्ति अपने गमों को भूलकर झूम उठता है । सभी के चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान होती है , रंगों के साथ खुशियाँ भी छलकती हैं ... और पता है ऐसा क्यों होता है ! होली के दिन लोग इतने खुश इसलिए होते हैं क्योंकि वे खुशियों के रंग में रंगे होते हैं .... उनके मन में प्रेम भाव होता है , उत्साह होता है .... होली के दिन हम सभी एक दूसरे को लाल-गुलाबी , नीले-पीले और न जाने किन-किन रंगों में रंगते हैं , और हमारी दुनिया रंगीन हो जाती है । इन बाहरी रंगों के साथ-साथ अपने अंदर ... यानि अपने मन ... अपनी आत्मा में भी कुछ रंग भरें , जैसे प्रेम का रंग ... सदभावना का रंग .... विश्वास का रंग ... त्याग का रंग ... इससे हमारा जीवन हमेशा के लिए रंगों भरा और सुखमय हो जाएगा । हर दिन हमारे लिए होली और हर रात दिवाली होगी .... हर दिन की सुबह मुस्कान बिखेरती हुई आएगी .... हम हर दिन खुशियों को गले लगाएंगे .... तो आने वाली इस होली को मनाइए " मन की होली .... मन से होली " ...... ।
अंजलि पंडित 

Wednesday 23 April 2014

जिन खोजा तिन पाइयाँ ......

एक दिन ऐसा था जब हम सभी मनुष्य भी जानवरों की तरह चार पैरों पर चलते थे , फिर उनमें से कुछ ने प्रयास किया .......अपनी हिम्मत दिखाई और दो पैरों पर खड़े होकर चलने लगे ...और जिन्होंने नहीं किया वो आज भी जानवर हैं , यानी चार पैरों पर चलने वाले ........... जो दो पैरों पर चलने लगे उनमें से कुछ ने और प्रयास किए ...वस्त्र बनाए ....आधुनिक उपकरण बनाए .....उनका उपयोग करना सीखा और बुद्धिमान मानव बन गए और जिन्होंने नहीं किया वो पिछड़े ही रह गए ..........  अब जो बुद्धिमान मनुष्य थे उनमें से कुछ लोगों ने अपना जीवन यापन करना सीखा , अपनी जीविका के साधन खोजे , एक सभ्य समाज का निर्माण किया ....और कुछ लोगों ने बिना कुछ किए ...बिना हाथ - पैर चलाये दूसरों की  कमाई पर जीना शुरू किया और वो बन गए " महमानव" यानी कि समाज के हितैषी ......अब भाई ये तो अपनी-अपनी खोज है , जिसने जो खोजा उसने वो पाया ....अब इसमे हम किसी को दोष दें तो वो ...तो ...बेकार कि बात हुई न ...!
...अब देखिये किसी ने अपने लिए मजदूरी खोजी ...तो किसी ने मालकीयत , अगर कुछ लोगों ने दूसरों को लूटना सीखा तो बाकी लोगों ने भी स्वयं को लुटवाना मंजूर किया .......उन्होने अपने लिए यही खोजा है , तो फिर फिक्र किस बात की ....! चाहे कोई सब कुछ लूट कर ले जाए वो अपने हित के लिए कहाँ खड़े होंगे ....? ... वो नींद से कब जागने वाले हैं .......!
अच्छा मेरी समझ में एक बात नहीं आती कि लोग नेताओं को बुरा क्यों कहते हैं ...? ....इसने ये घोटाला किया ...उसने वो भृष्टाचार किया ....इसने इतने करोण रुपयों का गबन किया ..... यह बात उस वक्त याद नहीं आती जब आप सज्जन पुरुष हजार-हजार के नोट लपेट कर चुप-चाप धीरे से साहब जी की जेब पर दल देते हैं ....और बेशर्मी तो देखिये मुस्कुराते भी हैं देते समय .....अब हजार लोगों का हजार-हजार , करोण बन गया तो साहब जी क्या करें .....? मुझे तो बड़ा तरस आता है उन पर ......क्या किया जाए किसी ने देना सीखा .... तो किसी ने लेना .....तो हमेशा लेने वाला ही कटघरे में क्यों खड़ा किया जाए ......? ....उसे ही दोषी क्यों ठहराया जाए ..... जब आप महाशय पाँच मिनट लाइन में खड़े होने से गार्ड को सौ रुपये देकर पहले जाना गर्व की बात समझते हैं ........ तो फिर अगर ये गर्व है ....तो लेने वाला दोषी कैसे हुआ ..... यही तो है अपनी  - अपनी मानसिकता ..... अपनी - अपनी खोज ......और यही है जिन खोजा तिन पाइयाँ का नियम भी ..... जब अपने ही खोजने से सब मिलता है तो यह कैसा समाज हमने खोज लिया है अपने लिए .....क्या यह विचार करने की बात नहीं है ...... और अगर सब विचार करते हैं तो फिर ऐसी खोज क्यों नहीं करते जो स्वयं के लिए भी हितकर हो और ....दूसरों के लिए भी ..... जो हमे भी उन्नति दे ....और हमारे समाज को भी , हमारे देश को भी .....इस सम्पूर्ण सृष्टि को भी ..... 

Friday 18 April 2014

क्या मिलेगा .....? ठेंगा.....!

भारतीय संविधान की पंद्रहवीं लोक सभा का संग्राम जारी है ...... आलोचना और अभिव्यंजना अपने चरम पर है ........ सत्ता के सागर को सुरक्षित पार  करके जाने का प्रतिभागियों के पास एकमेव मार्ग है ....अपने साथ चल रहे प्रतिभागी को डुबो दो ...... अपने आप को सही साबित करना ठीक है , परंतु दूसरों को प्रण-प्राण से नीचा दिखाने के लिए स्वयं की मर्यादा भूल जाना कितना उचित है .....ये किसे कौन समझाये ? .....चोर-चोर मौसेरे भाई ........ ! क्षमा कीजिये किसी की आलोचना करना मेरा मकसद नहीं ........पर दिल के गुबार का क्या करें ........! कमबख्त निकल ही पड़ता है ............. चलिये ये सब बातें छोड़ कर मैं मुद्दे की बात पर आती हूँ क्योंकि आजकल मुद्दा बहुत चर्चे का विषय है .........नहीं....नहीं .....नेता जी वाले मुद्दे की ओर दिमाग मत ले जाइए ..... क्योंकि इस समय उनसे अधिक परोपकारी और दीन इलाही कोई नहीं है ......अच्छा है ....! ..... पर  राम राज्य बनाने वाले इन मर्यादा पुरषोत्तमों के हृदय में यह परोपकार कब तक रहेगा .....ये मुझे तो नहीं पता .....मैं भी न .....किन बातों में उलझ बैठी .....! इस समय जिसे देखो एक ही बात कह रहा है कि अपना मतदान योग्य व्यक्ति को दें .......राष्ट्र निर्माण में भागीदार बने ....... ! बहुत सारे विकास के वादे भी हैं और नारे भी ..... मजदूर हैं भारत के मजबूत हाथ ,,,,,,, हो रहा भारत निर्माण ......! अच्छे दिन आने वाले हैं ..... ! आदि...आदि... कुछ भी हो अच्छे दिन देखने के लिए सभी लालायित हैं ...... मैं भी ..... ! एक बार मौका देने वाली बात पर भी कोई बुराई नहीं है .......मौका सभी को मिलना चाहिए ......पर जो बात  मेरे मन में खटक रही है , वह यह है कि मौका पाने के बाद कोई मुकर गया तो क्या होगा .......! सेवक शासक बन बैठा तो फिर क्या मिलेगा ....? ठेंगा....! अगर सुपात्र दान लेकर कुपात्र हो जाए ........तो क्या होगा .....! नहीं सोचा आपने इस बारे में तो सोचिए ........ एक बार हाथ जोड़ लेने से पाँच सालों के लिए हम कब तक अपना देश .....अपना भाग्य इन्हे सौपते रहेंगे ........ मेरी राय बस इतनी है कि दे दीजिये जिसे जो देना है ......... बेशक गाइए गुणगान उसके , जिसके आप पक्षधर हैं .......... लेकिन एक प्रण साथ में लेते चलिये कि जिस तरह उन्हें आप सत्ता सौप रहें हैं ....... अगर समय पर उन्होने अपने ही वादे पूरे नहीं किए तो पाँच सालो से पहले ही उन्हें उखाड़ फेकेंगे ........ और फिर से किसी नए मौके को चुनेगे ...... ये बगावत नहीं...... ये ......हमारी ताकत है , मेरी...आपकी....हम सबकी ....ताकत .......और हम उसका इस्तेमाल जरूर करेंगे ........ 

Tuesday 23 July 2013

आज़ादी के प्रणेता .... क्रांतिवीर " आज़ाद" को नमन _/\_

तुम  क्रांतिवीर .... भारत के गौरव ....

तुम राष्ट्र पुरुष .... आज़ादी के सौरव ...

स्वप्न तुम्हारा बस आज़ादी था ....

सिंहनाद सा  गर्जन था ....

जिस्म तुम्हारा फौलादी था ....

सदियों तक इतिहास के पन्नों में

ये स्वर गुंजेगा ....... कि -

भर दी दहशत जिसने फिरंगियों के मन में

ऐसा वो " आज़ाद " करामाती था ....

जब - तक जिये तुम , जिये शेर से ...
'
आखिरी सांस पर न था खौफ मौत से ....

छुए कोई दरिंदा तुम्हें

ज़ोर कहाँ इतना बाजूवे कातिल में था.....

आज एक ऐसे शूरवीर का जन्म दिवस है जिसकी वीरता को शब्दों में बयां कर पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं है । आज ही के दिन यानि की 23 जुलाई 1906 ईसवी को चन्द्र आज़ाद का जन्म मध्य प्रदेश के झाबुवा जिले के भावरा नामक स्थान में हुआ था , माँ जगरानी देवी की कोख से जन्मा था आज़ादी का एक परवाना सर पर कफन बांधकर ........ माँ उन्हे संस्कृत का विद्वान बनाना चाहती थीं इसलिए उन्हे संस्कृत सीखने के लिए काशी विद्यापीठ बनारस भेजा गया .... उस समय गांधी जी के द्वारा असहयोग आंदोलन चलाया जा रहा था तब एक चौदह वर्ष के छात्र ने आंदोलन में भाग लिया जिसके परिणाम स्वरूप उन्हे गिरफ्तार किया गया .... मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित किया गया .... और उसी दिन वह छात्र चंद्रशेखर सीता राम तिवारी से 'आज़ाद ' हो गया ...
आज़ाद को इसकी कड़ी सजा भुगतनी पड़ी ..... परंतु परवाह किसे थी इस बात की , क्योंकि उन दिनों हर आज़ादी के दीवाने के मन  में महान क्रांतिकारी रामप्रसाद विस्मिल की यही पंक्तियाँ गूंज रहीं थी -

सर फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाजूवे कातिल में है .......

..... क्रांतिकारी आज़ाद का कारवां चल पड़ा आज़ादी की ओर .... माँ भारती का एक लाल चल पड़ा उसे बेड़ियों से आज़ाद करवाने को ....... 1922 में गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया गया इस घटना
से आज़ाद को बहुत दुख हुआ , पर आज़ादी का प्रण लेकर वह आगे बढ़ते रहे । जलिया वाला बाग हत्याकांड ने
आज़ाद के मन को बहुत आहत किया , इस घटना के बाद से हिंसा का मार्ग अपना लिया ..... लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए उन्होने सांडर्स की हत्या की । आजाद का यह मानना था कि संघर्ष की राह में हिंसा होना कोई बड़ी बात नहीं है इसके विपरीत हिंसा बेहद जरूरी है । चंद्रशेखर आजाद ने एक निर्धारित समय के लिए झांसी को अपना गढ़ बना लिया. झांसी से पंद्रह किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में वह अपने साथियों के साथ निशानेबाजी किया करते थे. अचूक निशानेबाज होने के कारण चंद्रशेखर आजाद दूसरे क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के छ्द्म नाम से बच्चों के अध्यापन का कार्य भी करते थे।  वह धिमारपुर गांव में अपने इसी छद्म नाम से स्थानीय लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए थे। 
1925 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की गई. 1925 में काकोरी कांड हुआ जिसके आरोप में अशफाक उल्ला खां, बिस्मिल समेत अन्य मुख्य क्रांतिकारियों को मौत की सजा सुनाई गई. जिसके बाद चंद्रशेखर ने इस संस्था का पुनर्गठन किया।  भगवतीचरण वोहरा के संपर्क में आने के बाद चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के भी निकट आ गए थे।  इसके बाद भगत सिंह के साथ मिलकर चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजी हुकूमत को डराने और भारत से खदेड़ने का हर संभव प्रयास किया। 
1931 में फरवरी के अंतिम सप्ताह में जब आजाद गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलने सीतापुर जेल गए तो विद्यार्थी ने उन्हें इलाहाबाद जाकर जवाहर लाल नेहरू से मिलने को कहा. चंद्रशेखर आजाद जब नेहरू से मिलने आनंद भवन गए तो उन्होंने चंद्रशेखर की बात सुनने से भी इंकार कर दिया. गुस्से में वहां से निकलकर चंद्रशेखर आजाद अपने साथी सुखदेव राज के साथ एल्फ्रेड पार्क चले गए. वे सुखदेव के साथ आगामी योजनाओं के विषय में बात ही कर रहे थे कि पुलिस ने उन्हे घेर लिया. लेकिन उन्होंने बिना सोचे अपने जेब से पिस्तौल निकालकर गोलियां दागनी शुरू कर दी. दोनों ओर से गोलीबारी हुई. लेकिन जब चंद्रशेखर के पास मात्र एक ही गोली शेष रह गई तो उन्हें पुलिस का सामना करना मुश्किल लगा. चंद्रशेखर आजाद ने पहले ही यह प्रण किया था कि वह कभी भी जिंदा पुलिस के हाथ नहीं आएंगे. इसी प्रण को निभाते हुए उन्होंने वह बची हुई गोली खुद को मार ली.

पुलिस के अंदर चंद्रशेखर आजाद का भय इतना था कि किसी को भी उनके मृत शरीर के के पास जाने तक की हिम्मत नहीं थी. उनके शरीर पर गोली चला और पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही चंद्रशेखर की मृत्यु की पुष्टि हुई। फिरंगियों ने उनके शरीर को तो खत्म कर दिया पर आज़ादी को जो अलख आज़ाद के नाम ने जगाई वह कभी न खत्म हो सकी और अंततः आज़ादी का प्रण पूरा हुआ ...... ऐसे आज़ादी के प्रणेता ..... क्रांतिवीर आज़ाद को नमन ......... 
      

Friday 19 July 2013

एक सलाम क्रांति के अग्रदूत " मंगल पाण्डेय " के नाम .....

प्रथम स्वतन्त्रता सेनानी ..... जिसके जेहन से क्रांति शब्द पहली बार फूटा था.... जहां से आगाज हुआ था बगावत का .....जिसने आज़ादी की पहली लड़ाई का विगुल बजाया .... वो नाम है- मंगल पाण्डेय ....
भारत देश में व्यापारियों के रूप में आई ईस्ट इंडिया कंपनी ने जब भारत को अपने अधीन कर लिया तो लंदन  में बैठे उसके आकाओं ने शायद यह उम्मीद भी नहीं की होगी कि एक दिन मंगल पांडेय रूपी कोई तूफान ऐसी खलबली मचा देगा, जो भारत की आजादी की पहली लड़ाई कही जाएगी।
मंगल पाण्डेय का जन्म उन्नीस जुलाई 1827 को वर्तमान उत्तर प्रदेश जो उन दिनों संयुक्त प्रांत आगरा व अवध प्रांत के नाम से जाना जाता था, के बलिया जिले में स्थित नागवा गाँव में हुआ था ।  मंगल पांडेय बंगाल नेटिव इन्फैंट्री (बीएनआई) की 34वीं रेजीमेंट के सिपाही थे। सेना की बंगाल इकाई में जब ‘एनफील्ड पी.53’ राइफल में नई किस्म के कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ। तो हिन्दू-मुस्लिम सैनिकों के मन में गोरों के विरूद्ध बगावत के बीज अंकुरित हो गए। इन कारतूसों को मुंह से खोलना पड़ता था। भारतीय सैनिकों में ऐसी खबर फैल गई कि इन कारतूसों में गाय तथा सूअर की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता है तथा अंग्रेजों ने हिन्दुस्तानियों का धर्म भ्रष्ट करने के लिए यह तरकीब अपनाई है। नए कारतूस के इस्तेमाल और भारतीय सैनिकों के साथ होने वाले भेदभाव से गुस्साए मंगल पांडेय ने बैरकपुर छावनी में 29 मार्च 1857 को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। उनकी ललकार से ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन में खलबली मच गई और इसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी। संदिग्ध कारतूस का प्रयोग ईस्ट इंडिया कंपनी शासन के लिए घातक साबित हुआ।
गोरों ने हालांकि मंगल पांडेय और उनके सहयोगी ईश्वरी प्रसाद पर कुछ समय में ही काबू पा लिया था, लेकिन मंगल पाण्डेय द्वारा लगाई गयी यह चिंगारी बुझी नहीं । एक महीने बाद 10 मई 1857 को मेरठ की छावनी में बगावत हो गयी , यह विप्लव देखते ही देखते पूरे उत्तर भारत में फ़ेल गया इन लोगों की जांबाजी ने पूरे देश में उथल-पुथल मचाकर रख दी। जिससे अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश मिल गया कि भारत में राज्य करना उतना आसान नहीं हैं जितना कि वे समझ रहे थे । इसके बाद ही हिदुस्तान में चौत्तीस हजार सात सौ पैंतीस अँग्रेजी कानून यहाँ कि जनता पर लागू किए गए ताकि मंगल पाण्डेय सरीखा कोई सैनिक दोबारा अँग्रेजी शासन के विरुद्ध बगावत न कर सके परंतु अंग्रेजों का यह अरमान कभी पूरा न हो सका । मंगल पांडेय को आठ अप्रैल 1857 को फांसी पर लटका दिया गया। उनके बाद 21 अप्रैल को उनके सहयोगी ईश्वरी प्रसाद को भी फांसी दे दी गई।..... पर बगावत और इन दोनों की शहादत की खबर के फैलते ही देश में फिरंगियों के खिलाफ जगह-जगह संघर्ष भड़क उठा। हिन्दुस्तानियों तथा अंग्रेजों के बीच हुई जंग में काफी खून बहा। हालांकि बाद में अंग्रेज इस विद्रोह को दबाने में सफल हो गए, लेकिन मंगल पांडेय द्वारा 1857 में बोया गया क्रांति रूपी बीज 90 साल बाद आजादी के वट वृक्ष के रूप में तब्दील हो गया। चन्द्रशेखर आज़ाद , भगत सिंह , राम प्रसाद विस्मिल , सुभाष चन्द्र बोस जैसे हजारों क्रांतिकारी माँ भारती को आज़ाद करने के लिए उठ खड़े हुये और अपने प्राणो का बलिदान देकर हमे आज़ादी दिलाई , देश के इन तमाम सच्चे सपूतों सहित क्रांति के अग्रदूत मंगल पाण्डेय को सलाम...... 

भारतीय इतिहास में इस घटना को ‘1857 का गदर’ नाम दिया गया। बाद में इसे आजादी की पहली लड़ाई करार दिया गया।