अब हमारा देश आज़ाद है , हमारा समाज तरक्की की राह में आगे बढ़ रहा है ...हमने हर क्षेत्र में विकास
किया है... हमारी अर्थव्यवस्था बहुत आगे बढ़ रही है... दिन- प्रतिदिन एक नया बदलाव आ
रहा है ...नहीं बदली है एक चीज – मानसिकता , पैर चाँद तक पहुँच
गया , दिमाग अन्तरिक्ष के चक्कर लगा रहा है ... पर नीयत...नीयत
अभी भी बलात्कारी है , यही सच है इस प्रतिभाशाली समाज का...और
इन सभ्य लोगों का ...अगर यह सच न होता तो आए दिन एक मासूम लड़की किसी की हैवानियत का
शिकार न होती , हर औरत को बस एक ही नजर से घूरा जाता है । अपनी
मेहनत और संघर्ष के बल पर आज नारी पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है , हर क्षेत्र में उसने पुरुषों को चुनौती दी है, आज वह
अपनी रुचि के अनुसार कार्य करने के लिए आज़ाद तो है ,पर मन ....मन
अभी भी कैद में ही है । घर से निकलते वक्त मन में यह डर लगा रहता है कि कहाँ कोई घिनौनी
हरकत न कर बैठे , बस में चढ़ते वक्त यह डर लगा रहता है कि कब कोई
मनचला उसे पीछे से धक्का न मार दे या भीड़ की आड़ में उसका हाँथ न पकड़ ले । आफिस से निकलने
के बाद यदि 10 मिनट भी देर हो जाए तो डर लगता है कि घर में सब लोग क्या कहेंगे....? वह क्या जवाब देगी...? अगर कोई लड़का किसी लड़की के साथ
बद्तमीजी करता है तो घर वाले भी लड़की को ही संभल कर चलने को कहते हैं ... यह कैसा नियम
है ...? ऐसे वक्त में जब परिवार कि शख्त जरूरत होती है , किसी ऐसे की जरूरत होती है जो उसके साथ खड़ा हो सके ...मानसिक रूप से सहायता
कर सके....सांत्वना दे सके ...उस वक्त क्या परिवार वालों को माता-पिता को यह सोचने
की बजाय की लोग क्या कहेंगे ....अपनी लड़की को न्याय दिलाने के बारे में नहीं सोचना
चाहिए ... उसका आत्मविशवास यदि वापस लाने के बारे मन सोंचे तो लड़की के जख्म कुछ भर
सकते हैं....उसे नया जीवन मिल सकता है...पर ऐसा नहीं होता , लोग
खोखली इज्जत की आड़ में जीने के आदी हो गए हैं
.... अरे यदि वास्तव में इज्जतदार बनने का शौक है तो ऐसी ओछी मानसिकता वाले बिधर्मियों
को सबक सीखाना पड़ेगा....जिसने गलत किया ,किसी की जिंदगी उजाड़ दी
...उसे कोई आंच नहीं होती , उसका कुछ नहीं बिगड़ता है ....ये कैसी
आज़ादी है जो अंदर ही अंदर दम घोंट रही है । जिंदगी लूट जाने के बाद भी मुंह बंद रखने
को कहा जाता है... छेड़-छाड़ और बलात्कार जैसे मुद्दे तो इतने आम हो गयें हैं कि हर गली-कूँचे
और चौराहे पर दरिंदगी के नमूने आपको मिल जाएंगे । समझ में नहीं आता कि ऐसे वक्त में
...ऐसी वारदातों में समाज कि सुरक्षा के ठेकेदार …. कानून के
रक्षक ...जो सबकी सुरक्षा कि गारंटी देते हैं , वो कोई ठोंस कदम
क्यों नहीं उठाते...? चलिये वो नहीं कुछ कर पा रहें हैं...तो
क्या हमे सब कुछ इसी तरह ...तमासबीन कि तरह बैठे-बैठे देखते रहना चाहिए....
और इंतज़ार करना चाहिए कोई आकर हमारी रक्षा करे...हमारे समाज कि रक्षा करे ....कब तक
हम किसी मसीहे का इंतज़ार करेंगे... हमे अपनी सुरक्षा का वीणा स्वयं ही उठाना होगा, मुंह घुमाकर निकलने कि वजाय अन्याय का मुंह तोड़ जवाब देना होगा ...और यही समय
कि मांग है कि हम अपने लिए स्वयं आवाज़ उठाएँ, तभी मिल पाएगी शायद
सही मैने में आज़ादी.... खुलकर जीने की आज़ादी....
शुद्ध परिवेश में सांस लेने की आज़ादी.....
सराहनीय लेख ...
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