Friday 19 July 2013

एक सलाम क्रांति के अग्रदूत " मंगल पाण्डेय " के नाम .....

प्रथम स्वतन्त्रता सेनानी ..... जिसके जेहन से क्रांति शब्द पहली बार फूटा था.... जहां से आगाज हुआ था बगावत का .....जिसने आज़ादी की पहली लड़ाई का विगुल बजाया .... वो नाम है- मंगल पाण्डेय ....
भारत देश में व्यापारियों के रूप में आई ईस्ट इंडिया कंपनी ने जब भारत को अपने अधीन कर लिया तो लंदन  में बैठे उसके आकाओं ने शायद यह उम्मीद भी नहीं की होगी कि एक दिन मंगल पांडेय रूपी कोई तूफान ऐसी खलबली मचा देगा, जो भारत की आजादी की पहली लड़ाई कही जाएगी।
मंगल पाण्डेय का जन्म उन्नीस जुलाई 1827 को वर्तमान उत्तर प्रदेश जो उन दिनों संयुक्त प्रांत आगरा व अवध प्रांत के नाम से जाना जाता था, के बलिया जिले में स्थित नागवा गाँव में हुआ था ।  मंगल पांडेय बंगाल नेटिव इन्फैंट्री (बीएनआई) की 34वीं रेजीमेंट के सिपाही थे। सेना की बंगाल इकाई में जब ‘एनफील्ड पी.53’ राइफल में नई किस्म के कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ। तो हिन्दू-मुस्लिम सैनिकों के मन में गोरों के विरूद्ध बगावत के बीज अंकुरित हो गए। इन कारतूसों को मुंह से खोलना पड़ता था। भारतीय सैनिकों में ऐसी खबर फैल गई कि इन कारतूसों में गाय तथा सूअर की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता है तथा अंग्रेजों ने हिन्दुस्तानियों का धर्म भ्रष्ट करने के लिए यह तरकीब अपनाई है। नए कारतूस के इस्तेमाल और भारतीय सैनिकों के साथ होने वाले भेदभाव से गुस्साए मंगल पांडेय ने बैरकपुर छावनी में 29 मार्च 1857 को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। उनकी ललकार से ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन में खलबली मच गई और इसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी। संदिग्ध कारतूस का प्रयोग ईस्ट इंडिया कंपनी शासन के लिए घातक साबित हुआ।
गोरों ने हालांकि मंगल पांडेय और उनके सहयोगी ईश्वरी प्रसाद पर कुछ समय में ही काबू पा लिया था, लेकिन मंगल पाण्डेय द्वारा लगाई गयी यह चिंगारी बुझी नहीं । एक महीने बाद 10 मई 1857 को मेरठ की छावनी में बगावत हो गयी , यह विप्लव देखते ही देखते पूरे उत्तर भारत में फ़ेल गया इन लोगों की जांबाजी ने पूरे देश में उथल-पुथल मचाकर रख दी। जिससे अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश मिल गया कि भारत में राज्य करना उतना आसान नहीं हैं जितना कि वे समझ रहे थे । इसके बाद ही हिदुस्तान में चौत्तीस हजार सात सौ पैंतीस अँग्रेजी कानून यहाँ कि जनता पर लागू किए गए ताकि मंगल पाण्डेय सरीखा कोई सैनिक दोबारा अँग्रेजी शासन के विरुद्ध बगावत न कर सके परंतु अंग्रेजों का यह अरमान कभी पूरा न हो सका । मंगल पांडेय को आठ अप्रैल 1857 को फांसी पर लटका दिया गया। उनके बाद 21 अप्रैल को उनके सहयोगी ईश्वरी प्रसाद को भी फांसी दे दी गई।..... पर बगावत और इन दोनों की शहादत की खबर के फैलते ही देश में फिरंगियों के खिलाफ जगह-जगह संघर्ष भड़क उठा। हिन्दुस्तानियों तथा अंग्रेजों के बीच हुई जंग में काफी खून बहा। हालांकि बाद में अंग्रेज इस विद्रोह को दबाने में सफल हो गए, लेकिन मंगल पांडेय द्वारा 1857 में बोया गया क्रांति रूपी बीज 90 साल बाद आजादी के वट वृक्ष के रूप में तब्दील हो गया। चन्द्रशेखर आज़ाद , भगत सिंह , राम प्रसाद विस्मिल , सुभाष चन्द्र बोस जैसे हजारों क्रांतिकारी माँ भारती को आज़ाद करने के लिए उठ खड़े हुये और अपने प्राणो का बलिदान देकर हमे आज़ादी दिलाई , देश के इन तमाम सच्चे सपूतों सहित क्रांति के अग्रदूत मंगल पाण्डेय को सलाम...... 

भारतीय इतिहास में इस घटना को ‘1857 का गदर’ नाम दिया गया। बाद में इसे आजादी की पहली लड़ाई करार दिया गया। 

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