Tuesday 23 July 2013

आज़ादी के प्रणेता .... क्रांतिवीर " आज़ाद" को नमन _/\_

तुम  क्रांतिवीर .... भारत के गौरव ....

तुम राष्ट्र पुरुष .... आज़ादी के सौरव ...

स्वप्न तुम्हारा बस आज़ादी था ....

सिंहनाद सा  गर्जन था ....

जिस्म तुम्हारा फौलादी था ....

सदियों तक इतिहास के पन्नों में

ये स्वर गुंजेगा ....... कि -

भर दी दहशत जिसने फिरंगियों के मन में

ऐसा वो " आज़ाद " करामाती था ....

जब - तक जिये तुम , जिये शेर से ...
'
आखिरी सांस पर न था खौफ मौत से ....

छुए कोई दरिंदा तुम्हें

ज़ोर कहाँ इतना बाजूवे कातिल में था.....

आज एक ऐसे शूरवीर का जन्म दिवस है जिसकी वीरता को शब्दों में बयां कर पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं है । आज ही के दिन यानि की 23 जुलाई 1906 ईसवी को चन्द्र आज़ाद का जन्म मध्य प्रदेश के झाबुवा जिले के भावरा नामक स्थान में हुआ था , माँ जगरानी देवी की कोख से जन्मा था आज़ादी का एक परवाना सर पर कफन बांधकर ........ माँ उन्हे संस्कृत का विद्वान बनाना चाहती थीं इसलिए उन्हे संस्कृत सीखने के लिए काशी विद्यापीठ बनारस भेजा गया .... उस समय गांधी जी के द्वारा असहयोग आंदोलन चलाया जा रहा था तब एक चौदह वर्ष के छात्र ने आंदोलन में भाग लिया जिसके परिणाम स्वरूप उन्हे गिरफ्तार किया गया .... मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित किया गया .... और उसी दिन वह छात्र चंद्रशेखर सीता राम तिवारी से 'आज़ाद ' हो गया ...
आज़ाद को इसकी कड़ी सजा भुगतनी पड़ी ..... परंतु परवाह किसे थी इस बात की , क्योंकि उन दिनों हर आज़ादी के दीवाने के मन  में महान क्रांतिकारी रामप्रसाद विस्मिल की यही पंक्तियाँ गूंज रहीं थी -

सर फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाजूवे कातिल में है .......

..... क्रांतिकारी आज़ाद का कारवां चल पड़ा आज़ादी की ओर .... माँ भारती का एक लाल चल पड़ा उसे बेड़ियों से आज़ाद करवाने को ....... 1922 में गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया गया इस घटना
से आज़ाद को बहुत दुख हुआ , पर आज़ादी का प्रण लेकर वह आगे बढ़ते रहे । जलिया वाला बाग हत्याकांड ने
आज़ाद के मन को बहुत आहत किया , इस घटना के बाद से हिंसा का मार्ग अपना लिया ..... लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए उन्होने सांडर्स की हत्या की । आजाद का यह मानना था कि संघर्ष की राह में हिंसा होना कोई बड़ी बात नहीं है इसके विपरीत हिंसा बेहद जरूरी है । चंद्रशेखर आजाद ने एक निर्धारित समय के लिए झांसी को अपना गढ़ बना लिया. झांसी से पंद्रह किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में वह अपने साथियों के साथ निशानेबाजी किया करते थे. अचूक निशानेबाज होने के कारण चंद्रशेखर आजाद दूसरे क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के छ्द्म नाम से बच्चों के अध्यापन का कार्य भी करते थे।  वह धिमारपुर गांव में अपने इसी छद्म नाम से स्थानीय लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए थे। 
1925 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की गई. 1925 में काकोरी कांड हुआ जिसके आरोप में अशफाक उल्ला खां, बिस्मिल समेत अन्य मुख्य क्रांतिकारियों को मौत की सजा सुनाई गई. जिसके बाद चंद्रशेखर ने इस संस्था का पुनर्गठन किया।  भगवतीचरण वोहरा के संपर्क में आने के बाद चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के भी निकट आ गए थे।  इसके बाद भगत सिंह के साथ मिलकर चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजी हुकूमत को डराने और भारत से खदेड़ने का हर संभव प्रयास किया। 
1931 में फरवरी के अंतिम सप्ताह में जब आजाद गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलने सीतापुर जेल गए तो विद्यार्थी ने उन्हें इलाहाबाद जाकर जवाहर लाल नेहरू से मिलने को कहा. चंद्रशेखर आजाद जब नेहरू से मिलने आनंद भवन गए तो उन्होंने चंद्रशेखर की बात सुनने से भी इंकार कर दिया. गुस्से में वहां से निकलकर चंद्रशेखर आजाद अपने साथी सुखदेव राज के साथ एल्फ्रेड पार्क चले गए. वे सुखदेव के साथ आगामी योजनाओं के विषय में बात ही कर रहे थे कि पुलिस ने उन्हे घेर लिया. लेकिन उन्होंने बिना सोचे अपने जेब से पिस्तौल निकालकर गोलियां दागनी शुरू कर दी. दोनों ओर से गोलीबारी हुई. लेकिन जब चंद्रशेखर के पास मात्र एक ही गोली शेष रह गई तो उन्हें पुलिस का सामना करना मुश्किल लगा. चंद्रशेखर आजाद ने पहले ही यह प्रण किया था कि वह कभी भी जिंदा पुलिस के हाथ नहीं आएंगे. इसी प्रण को निभाते हुए उन्होंने वह बची हुई गोली खुद को मार ली.

पुलिस के अंदर चंद्रशेखर आजाद का भय इतना था कि किसी को भी उनके मृत शरीर के के पास जाने तक की हिम्मत नहीं थी. उनके शरीर पर गोली चला और पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही चंद्रशेखर की मृत्यु की पुष्टि हुई। फिरंगियों ने उनके शरीर को तो खत्म कर दिया पर आज़ादी को जो अलख आज़ाद के नाम ने जगाई वह कभी न खत्म हो सकी और अंततः आज़ादी का प्रण पूरा हुआ ...... ऐसे आज़ादी के प्रणेता ..... क्रांतिवीर आज़ाद को नमन ......... 
      

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